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Friday, 27 July 2018

शारीरिक बनावट नहीं दिल को देखो
फिल्मों में अक्सर ही मोटे कलाकारों को कॉमेडी किरदारों में सिमित कर दिया जाता रहा है, लेकिन अब उन्हें ध्यान में रखकर दमदार किरदार लिखे जाते है। 'फन्ने खां' से हिंदी सिनेमा में दस्तक दे रही पीहू सैंड का किरदार भी कुछ ऐसा ही है। फिल्म में उनके किरदार का नाम लता है। मोटापे के कारन उसे हंसी का पात्र बनना पड़ता है। दिल्ली की जन्मी और मुंबई में पली-बढ़ी पीहू की बातें उन्ही की जुबानी:

फिल्म में किरदार
फिल्म में अनिल कपूर मेरे पिता फन्ने खां की भूमिका में है। वह लता मंगेशकर, मुहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार के मुरीद है। इसीलिए उन्होंने मेरा नाम लता रखा। वह मुझे गायिका बनाना चाहते है और मैं भी सिंगर बनना चाहती हूँ। निम्न मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली लता अपने सपनों का साकार करने के लिए संघर्षरत है। लता का सबसे बड़ा संघर्ष अपने मोटापे से है। मोटे होने की वजह से लोग उसे अपनाते नहीं हैं। मजाक उड़ाते है। उसकी प्रतिभा देखने के बजाय उसकी शारीरिक बनावट को देखते है, पर लता मजबूत इरादों वाली लड़की है।उसे पता है कि जिंदगी में क्या करना है। उसके साथ उसके पापा है।

असल में झेला है मोटापे का दंश
मैं बचपन में बहुत पतली थी। कुछ मेडिकल कारणों से मैं मोटी हो गयी। जब लोग मुझे चिढ़ाते थे तो मुझे दुःख होता था। मैं रोती थी। बढ़ी और समझदार होने पर इस बातों का मुझ पर असर नहीं पड़ता था। बहरहाल, पहले जो लोग मुझे चिढ़ाते थे, वे अब मेरे दोस्त है। मेरा मानना है कि आपको दूसरों के व्यंग्य और कड़वी बातो को नजरअंदाज करना चाहिए। आपको अपने लक्ष्य पता होना चाहिए। उन पर फोकस होना चाहिए।

किरदार के लिए बढ़ाया वजन
फिल्म के लिए मैंने बीस किग्रा वजन बढ़ाया। वजन बढ़ाने के दौरान जो मन करता वह खाती थी। खासकर चावल। वह मुझे बेहद पसंद है। बहरहाल बढ़े वजन के कारण कई समस्याएँ भी पेश आई। मुझे वेस्टन डांस परफॉर्म करना था। उस वक्त मैं 98 किग्रा की थी। यद्यपि डांस करना मुझे बेहद पसंद है, पर वजन के कारण मुझे डांस करने में बहुत तकलीफ हुई। मैं हांफने लगती थी। थक जाती थी। कई स्वस्थ्य समस्याएं भी हुई। शरीर में विटामिन का स्तर काम हो गया था। अब सूटिंग के बाद कुछ वजन कम हुआ है।

बदलेगा लोगो का नजरिया
'फन्ने खां' फिल्म को देखने के बाद लोगो का मोटे लोगो के प्रति दृश्टिकोण बदलना चाहिए। मुझे उम्मीद है कि उन्हें समझ आयेगा कि इंसान की शारीरिक बनावट न देखकर उसकी प्रतिभा को देखें। उसका सम्मान करें। ये बात लोगों को समझना जरुरी है कि शारीरिक बनावट या उसके पहनावे को मुद्दा न बनाते हुए यह देखें कि वह इंसान कैसा है और समाज में किस तरह से अपना योगदान दे रहा है। वैसे मैं यह मानती हूँ कि वजन पर नियंत्रण रखना जरुरी है। मोटापा कई बीमारियों को जन्म दे सकता है।

एक्टिंग से लगाव
मेरे पिता पारितोष सेन और माँ सपना दिल्ली के नेशनल स्कूल ऑफ़ ड्रामा के छात्र रहे है। दोनों ही एक्टर हैं। वे मुझे अपने साथ सेट पर ले जाते थे। वहीं से एक्टिंग के प्रति लगाव गहरा होने लगा। माँ का एक मोनोलॉग था थियेटर का, जो मैंने कॉलेज में परफॉर्म किया था। वे मेरी पहली परफॉर्मेंस थी। उसे सबने पसंद किया। जिससे मेरा आत्मविश्वास बढ़ा। 'फन्ने खां' के लिए मैंने पहली बार ऑडिशन दिया था। इससे पहले मैं एड डायरेक्टर नारायण श्री को असिस्ट करती थी, ताकि एक्टिंग की बारीकियां सीख सकूँ। बहरहाल, 'फन्ने खाँ' के लिए मेरे ऑडिशन की प्रकिया छह-सात महीनों तक चली। एक हफ्ते की वर्कशॉप हुई। उसी दौरान निर्देशक अतुल मांझेकर ने थोड़ा बहुत लता के किरदार के बारे में बताया। वहां से मेरा चयन हुआ। मेहनत व लगन के साथ एक्टिंग में पहचान हासिल करना ही लक्ष्य है।


       





















           

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