प्रियंका के तीर पैने, पर निशाना भटक रहा
लोग प्रियंका की शैली के मुरीद, पर राहुल फैक्टर की वजह से मोदी के सामने मुख्य योद्धा की मान्यता नहीं
प्रियंका वाड्रा कोई कसर नहीं छोड़ रही। वह तरकस में मोदी का नाम लिखे पैने तीर भर कर मैदान में उतरी है, पर फिलहाल निशाना सही जगह पर नहीं लग रहा। लोग उनके हाव-भाव और भाषण शैली में दादी इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं। उनकी तारीफ करते है, फिर उनकी तुलना राहुल गाँधी से करते है। उनके देर से राजनीति में उतरने और अभी भी पुण्य नेतृत्व ना सौंपे जाने पर सहानुभूति जताते हैं। आम आदमी का यह नजरिया कांग्रेस नेतृत्व की उस रणनीति की राह में फिलहाल बाधा है, जिसके तहत प्रियंका वाड्रा को मिशन 2019 का ट्रंप कार्ड मानकर पूर्वांचल की कमान सौंपी गई है।
शुक्रवार को रायबरेली से अयोध्या तक 65 किलोमीटर लंबा उनका रोड शो वाहनों के काफिले या जन उपचार के दृश्य भले ही यादगार ना हो, पर कांग्रेस के पूर्णकालिक नेता के रूप में छाप छोड़ने में सफल रही। रायबरेली उनके परिवार की सीट है, जहां उनका बचपन से आना-जाना रहा। पूर्णकालिक राजनीति में वह अब उतरी, जबकि रायबरेली और अमेठी का चुनाव प्रबंधक वह कई चुनाव से संभाल रही हैं। बहरहाल, इस बार चुनौती बड़ी है। इसीलिए वह रायबरेली और अमेठी की हद से निकल कर पहली बार अयोध्या आई। करीब 8 घंटे के रोड शो में उन्होंने खूब पसीना बहाया। लोगों के करीब जाकर आत्मीयता से मिली। महिलाओं को गले लगाया बच्चों को पुष्कारा भाषण बाजी को अपने लिए अरुचिकर बताते हुए भाषण भी दिए। अयोध्या में शो भी अच्छा हुआ और कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाया।
अपरान्ह 3:15 बजे। प्रियंका का रोड शो अयोध्या के बिल्कुल करीब नकुआ कुआं आ पहुंचा है। अपनी तपिश से प्रियंका का हौसला भी डिगाने में विफल रहने पर सूरज थोड़ा नरम हो चला है। तभी सब कार्यकर्ताओं के जोश में दिख रही है। माइक पर निर्मल खत्री हैं। वह जाने-पहचाने हैं, इसलिए कार्यकर्ता उनके भाषण के बीच कभी राहुल-प्रियंका तो बीच-बीच में इंदिरा-प्रियंका जिंदाबाद के नारे लगा रहे हैं। निर्मल जी कार्यकर्ताओं का मन भांप गए और प्रियंका के लिए माइक खाली कर दिया। कुछ क्षण वातावरण जयकारों से गूंज उठा।
फिर शांति छा गई। प्रियंका परिपक्व नेता की तरह जाकर भाषण शुरु कर रही हैं कि मुझे भाषणबाजी पसंद नहीं है। पहला तीर ही मोदी पर। वह अपनी हालिया वाराणसी यात्रा का जिक्र करते हुए उन पर निशाना साध रही कि मोदी जी पूरी दुनिया घूम आए, पर अपने संसदीय क्षेत्र के गांव कभी नहीं गए। इस पर ज्यादा तालियां नहीं बजी तो उन्होंने और अधिक पैने तीर चले। कहा कि जनता की सुविधा के लिए धन की कमी बताते हैं, पर पसंदीदा उद्योगपतियों के कर्ज माफ करने पर पैसा लुटाते हैं। और भी कई आरोप जड़े। कार्यकर्ताओं की प्रतिक्रिया मिली जुली है। उनकी ज्यादा दिलचस्पी अपनी नेता के करीब पहुंचकर माला पहनाने और उनके साथ सेल्फी बनाने में है। इसके लिए वे एसपीजी से भी मोर्चा ले रहे हैं।
प्रियंका की चुनौती जितनी जटिल है, उनके इस रोड शो में दिख रहा है। उनके राजनीतिक कौशल, इंदिरा गांधी जैसी छवि शैली कार्यकर्ताओं में उनकी स्वीकार्यता की चर्चा दो दशक पहले ही शुरू हो गई थी। यदि कांग्रेस नेतृत्व में किन्ही कारणों से उन्हें अब तक नेपथ्य में रखा। वह अमेठी रायबरेली में सिर्फ चुनाव के वक्त सीमित भूमिका निभाती रही। उन्होंने मौजूदा चुनाव के ठीक पहले बड़ी जिम्मेदारी देकर मैदान में उतार दिया गया यद्यपि चुनाव राहुल गांधी के ही नेतृत्व में लड़ा जा रहा है। ऐसे में प्रियंका के सामने राहुल की नैया को सहारा देने के साथ-साथ खुद को साबित करने की भी चुनौती है। उसके लिए वह पूरा जोर भी लगा रही है जन-धारणा के स्तर पर उन्हें पीएम नरेंद्र मोदी के सामने मुख्य योद्धा नहीं माना जा रहा। इस बाधा से पार पाए बगैर प्रियंका वाड्रा सचमुच कांग्रेस का ट्रंप कार्ड बन पाती है या नहीं, कुछ दिन बाद पता चलेगा।
0 comment:
Post a Comment