अनुकरणीय है सीता जी का जीवन रामकथा भारत की सर्वाधिक लोकप्रिय गाथा है। इसे यह भारतीय संस्कृति का रूप कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। राम कथा के सभी पात्र न सिर्फ सशक्त व प्रभावशाली है बल्कि भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों को महिमा प्रदान करते दिखाई देते हैं। सीता जी की भूमिका तो रामकथा की रीढ़ है। ना सिर्फ स्त्री बल्कि पुरुष भी उनके जीवन का अनुकरण करें तो उनका जीवन सफल हो सकता है। पुत्री, पत्नी, बहू, महारानी के रूप में जाने जीवन की प्रत्येक किरदार को जिस खूबसूरती और सफलता से उन्होंने निभाया वह बेमिसाल तथा अनुकरणीय है।
सीता जी का प्रमुख गुण कर्तव्यपरायणता है। सीता माता अपने आचरण से सीख देती हैं कि पति पत्नी एक दूसरे से सुख दुख में सहभागी बने जब श्रीराम को वनवास मिला, तो पति के मना करने के बावजूद सीता जी ने भी महल में रहने का मोह नहीं किया। और वह पति के साथ उनकी सहभागी बनकर बन की ओर चल पड़ी और हर हाल में पति का साथ निभाने का निश्चय किया। सीता जी का एक अन्य महत्वपूर्ण गुण है विषम परिस्थितियों में धैर्य न खोना। जब रावण ने अपनी माया से उनका हरण कर लिया तब भी मैं हताश निराश नहीं हुई मानसिक रूप से इतनी सबल थी की धमकाने और माया का प्रभाव डालने पर उनका आत्मविश्वास नहीं डिगा। और उन्होंने गलत प्रस्ताव के आगे समर्पण नहीं किया। अंततः सत्य की जीत हुई वही सीता जी ने अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता भी प्रमाणित की क्योंकि वह का कारण नहीं बनना चाहती थी। उन्हें अपने सत की शक्ति पर पूरा भरोसा था। हलाकि एक वर्ग सीता की अग्निपरीक्षा और उनके त्याग पर उठाता है, लेकिन जीवन में त्याग की प्रतिष्ठा करने वाली भारतीय संस्कृति के अनुयाई सीता के जीवन में घटित घटनाओं के मूल्य में लोकमंगल के उनका लोकोत्तर त्याग ही देखते हैं। यही सच भी है। ऋषि बाल्मीकि आश्रम में अपने पुत्र लव-कुश को जन्म देने वाली राज महल की रानी सीता ने संसाधन विहीन माहौल में अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा और संस्कार दिए कि उनके साहस और आत्मविश्वास के आगे श्रीराम की सेना भी न टिक सकी। सचमुच सीता के गुणों के बारे में जितना लिखा जाए, कम है। उनका जीवन सयंमी,साहसी, आत्मविश्वास ही कर्तव्यपरायण और श्रमजीवी बनने के लिए प्रेरित करता है। इससे हर व्यक्ति को नैतिकता की शिक्षा भी मिलती है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था, 'मेरा जन्म विश्वास है कि जिस तरह सीता को सम्मान दिया गया उतना ही सम्मान और श्रद्धा दूसरी स्त्री को भी दी जाए।' खेद का विषय की 21वीं सदी के अत्याधुनिक भारत में पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के अनेक बिसंगतिया पैदा करती है। स्वच्छंदता के नाम पर अनैतिक आचरण की बाढ़ ने हमारे सामाजिक ताने-बाने कमजोर का दिया है। स्त्रियों के साथ होने वाले अपराध लोगों के विकृत मानसिकता को दर्शाते हैं और माता सीता के जीवन से प्रेरणा लेकर समाज की संरचना के लिए प्रतिबद्ध हो।
सीता जी का प्रमुख गुण कर्तव्यपरायणता है। सीता माता अपने आचरण से सीख देती हैं कि पति पत्नी एक दूसरे से सुख दुख में सहभागी बने जब श्रीराम को वनवास मिला, तो पति के मना करने के बावजूद सीता जी ने भी महल में रहने का मोह नहीं किया। और वह पति के साथ उनकी सहभागी बनकर बन की ओर चल पड़ी और हर हाल में पति का साथ निभाने का निश्चय किया। सीता जी का एक अन्य महत्वपूर्ण गुण है विषम परिस्थितियों में धैर्य न खोना। जब रावण ने अपनी माया से उनका हरण कर लिया तब भी मैं हताश निराश नहीं हुई मानसिक रूप से इतनी सबल थी की धमकाने और माया का प्रभाव डालने पर उनका आत्मविश्वास नहीं डिगा। और उन्होंने गलत प्रस्ताव के आगे समर्पण नहीं किया। अंततः सत्य की जीत हुई वही सीता जी ने अग्नि परीक्षा देकर अपनी पवित्रता भी प्रमाणित की क्योंकि वह का कारण नहीं बनना चाहती थी। उन्हें अपने सत की शक्ति पर पूरा भरोसा था। हलाकि एक वर्ग सीता की अग्निपरीक्षा और उनके त्याग पर उठाता है, लेकिन जीवन में त्याग की प्रतिष्ठा करने वाली भारतीय संस्कृति के अनुयाई सीता के जीवन में घटित घटनाओं के मूल्य में लोकमंगल के उनका लोकोत्तर त्याग ही देखते हैं। यही सच भी है। ऋषि बाल्मीकि आश्रम में अपने पुत्र लव-कुश को जन्म देने वाली राज महल की रानी सीता ने संसाधन विहीन माहौल में अपने बच्चों को ऐसी शिक्षा और संस्कार दिए कि उनके साहस और आत्मविश्वास के आगे श्रीराम की सेना भी न टिक सकी। सचमुच सीता के गुणों के बारे में जितना लिखा जाए, कम है। उनका जीवन सयंमी,साहसी, आत्मविश्वास ही कर्तव्यपरायण और श्रमजीवी बनने के लिए प्रेरित करता है। इससे हर व्यक्ति को नैतिकता की शिक्षा भी मिलती है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था, 'मेरा जन्म विश्वास है कि जिस तरह सीता को सम्मान दिया गया उतना ही सम्मान और श्रद्धा दूसरी स्त्री को भी दी जाए।' खेद का विषय की 21वीं सदी के अत्याधुनिक भारत में पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के अनेक बिसंगतिया पैदा करती है। स्वच्छंदता के नाम पर अनैतिक आचरण की बाढ़ ने हमारे सामाजिक ताने-बाने कमजोर का दिया है। स्त्रियों के साथ होने वाले अपराध लोगों के विकृत मानसिकता को दर्शाते हैं और माता सीता के जीवन से प्रेरणा लेकर समाज की संरचना के लिए प्रतिबद्ध हो।
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