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Saturday, 28 April 2018

बढ़ेंगी बेटियां बढ़े बेटियां

बढ़ेंगी बेटियां पढेंगी बेटियां 
वह गर्भ से बाहर आए। दुनिया देखे। हँसे खिलखिलाये। शिक्षित हो और आगे बढ़े। इसके लिए देश में महत्वकांक्षी 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान चल रहा है। गांव गांव में अभिभावकों ने बेटियों को स्कूल भेजना शुरू कर दिया है।  लेकिन उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं बिहार जैसे बड़े राज्यों की वजह सिक्किम, मेघालय, केरल, हिमाचल प्रदेश आज से छोटे राज्यों की लड़कियां की साक्षरता दर दर्शाती है। कि कैसे यहां का प्रगतिशील समाज दे रहा है लड़कियों को पढ़ने का अवसर 
आर्म्ड फोर्सेज स्पेशल पावर एक्ट यानि अफ्सफा के खिलाफ 16 वर्षों तक भूख हड़ताल पर रही मणिपुर की इरोम  शर्मिला के जीवन व्यक्तित्व से समूची दुनिया परिचित है। वही पदम श्री से सम्मानित मेघालय की सिलवरीन स्वर ऐसी समाज सुधारक थे। जिन्होंने अपना संपूर्ण जीवन राज्य की लड़कियों महिलाओं के कल्याण के लिए समर्पित कर दिया।  पर्यावरणविद एवं शिक्षाविद के रूप में उनका योगदान अविस्मरणीय है। खासी समुदाय कि वह पहला महिला थी,  जिन्होंने 1938 में गर्ल्स गाइड मूवमेंट की प्रशिक्षक एवं सलाहकार की जिम्मेदारी थी। सिलवरीन मानती थी कि शिक्षा के माध्यम से समाज में बदलाव आ सकता है। असम प्रदेशिक महिला समिति के संस्थापक चंद्रप्रभा से सैकियानी भी समाज सुधारक महिला अधिकारों के लिए संघर्ष करने वाली प्रखर कार्यकर्ता लेखक एवं शिक्षक थी बेहद कम उम्र में उन्होंने लड़कियों की शिक्षा को लेकर आवाज उठाने शुरू कर दी थी। भारतीय राष्ट्रीय असहयोग एवं स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भागीदारी निभाने वाली चंद्रप्रभा लैंगिक समानता एवं स्त्रियों की शिक्षा की सशक्त पैरोकार थी। यह सभी महिलाएं उस क्षेत्र की प्रतिनिधि रही है। जहां का न सिर्फ लिंग अनुपात बल्कि साक्षरता दर भी राष्ट्रीय औसत से काफी बेहतर है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले डिपार्टमेंट ऑफ स्कूल एजुकेशन डिपार्टमेंट ऑफ हायर एजुकेशन की 2016 की वार्षिक रिपोर्ट इस बात की पुष्टि करती है कि बड़े राज्य लड़कियों की शिक्षा के मामले में पिछड़ रहे हैं। जबकि मिजोरम, मेघालय, नागालैंड की लड़कियां की साक्षरता दर बढ़ रही है। 

बढ़ते समाज का साथ 
दिल्ली विश्वविद्यालय के अदिति महाविद्यालय में भूगोल की एसोसिएट प्रोफेसर और ओड़िशा निवासी इंडिया पुण्यातोया पात्रा कहती है, 'उत्तर पूर्व का समाज सदियों से स्त्रियों का दर्जा देता है। वहां दहेज प्रथा सती प्रथा भ्रूण हत्या का चलन नहीं है। आदिवासी बहुल क्षेत्र एवं संस्कृति का प्रभाव भी स्त्रियों के पक्ष में रहा है।' 2011 की जनगणना रिपोर्ट के अनुसार जहां महिला पुरुष का राष्ट्रीय औसत 940-1000 है। वही अरुणाचल प्रदेश, नागालैंड, सिक्किम, उत्तर पूर्वी राज्यों में अधिक बेहतर है। यहां के स्त्री और पुरुष दोनों समान रूप से करते हैं। घर और बाहर के काम में बराबर की भागीदारी करती है और काबिलई पंचायत स्तर पर ले जाने वाले फैसलों में स्त्री का स्वर का सम्मान किया जाता है। यही कारण है कि लड़कियों की शिक्षा को भारत की तुलना में उच्चतम मिलता है। उत्तर पूर्वी राज्यों में एक विशेष बात यह भी कई दशकों से महिलाओं की काम में भागीदारी यथावत बनी हुई है। जबकि देश के अन्य हिस्सों में वह भी है योजना आयोग की मानव विकास रिपोर्ट से पता चलता है कि किस राज्य में लैंगिक समानता में कमी आई है। 

शिक्षा की बढ़ती स्वीकार्यता 
स्वास्थ्य व्यवस्था, वित्तीय संसाधनों पर अधिकार, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में हिस्सेदारी के अलावा शैक्षिक स्तर एक बड़ा मानक है जिससे समाज में स्त्रियों की स्थिति का आकलन किया जाता है। जिन राज्यों में महिला साक्षरता दर उच्च शिक्षण संस्थानों में नामांकन की दर कम होती है उससे पता चलता है कि वहां के समाज में स्त्रियों के खिलाफ कितना भेदभाव है। हालांकि उत्तर पूर्वी राज्यों में साक्षर पुरुषों की संख्या महिलाओं से अधिक रही है लेकिन राष्ट्रीय औसत से इनका अंतर यहां कम देखा गया है। विशेषकर मिजोरम मेघालय नागालैंड में। अरुणाचल प्रदेश एवं असम को छोड़ दे तो साक्षरता दर सबसे अधिक है। पिछले कुछ वर्षों में स्थित में अपेक्षाकृत  बदलाव आया है।  राष्ट्रपति पदक विजेता, दिल्ली स्थित भारती पब्लिक स्कूल की प्राचार्य सविता अरोड़ा की माने तो उत्तर पूर्वी या अन्य छोटे राज्यों में शिक्षा की स्वीकार्यता एवं महत्व दोनों बढे हैं। इसके सहारे लड़कियाँ अन्य राज्यों की ओर पलायन कर वहां अलग-अलग क्षेत्रों में अपनी पहचान बना रही है। दूसरी ओर बिहार, उत्तर प्रदेश आज राज्यों में शैक्षिक व्यवस्था चरमराई हुई है स्कूल-कॉलेजों में शिक्षक और बुनियादी सुविधाएं नहीं है। 

सामाजिक संरचना में अंतर 
पश्चिम बंगाल से ताल्लुक रखने वाली और दिल्ली यूनिवर्सिटी से जर्मन स्टडीज की प्रोफेसर व डूटा की पूर्व अध्यक्ष शास्वती मजूमदार का कहना है शैक्षणिक विकास के मामले में केरल लंबे समय से उच्च स्थान पर रहा है। दो दशक पहले यूनेस्को की मानकों के मुताबिक इसे पूर्ण साक्षर राज्य घोषित किया जा चुका है। लेकिन शेष भारत के शैक्षिक माहौल स्तर से दिनों दिन गिरावट आ रही है। उच्च शिक्षा को छोड़ दे तो प्राथमिक शिक्षा का हाल भी बुरा है। सरकारी स्कूलों का ढांचा ध्वस्त होने वाली स्कूलों को जरूरत से अधिक प्रोत्साहन मिलने से क्षेत्र में गहरी खाई बन गई है। उस पर स्थित आत्मक समाज के लड़कियों के प्रति रवैया उन्हें आत्म निर्णय लेने से रोकता है। जो कुछेक मिशालें बनती है।  उनका खुद का अधिक होता है उत्तर पूर्वी राज्यों के साथ ऐसा नहीं है वहां के समाज में महिलाओं का प्रभाव है। इसलिए आज महिला साक्षरता के मामले में देश का नंबर वन राज्य है। स्कूल ड्राफ्ट लगभग शून्य है। 2012 की आर्थिक जनगणना के बाद जारी की गई रिपोर्ट देखें तो तमिलनाडु प्रदेश और महाराष्ट्र में महिला साक्षरता दर सबसे अधिक है। 

बीमार राज्यों में विषमता 
NEPA  में प्रोफेसर एवं रिसर्च डॉक्टर एंथनी मैथ्यू कहते हैं, 'मध्य प्रदेश, राजस्थान, बिहार, उत्तर प्रदेश जैसे भी राज्य बीमार प्रदेश की श्रेणी में रहे हैं। जहां सामाजिक शैक्षिक आर्थिक विषमता अधिक है। हिंदी बेल्ट में बदहाली का बहुत बड़ा कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव भी रहा है। जबकि उत्तर पूर्वी के लक्षण के राज्यों हिमाचल प्रदेश की शैक्षिक गतिविधियों का पुराना इतिहास है सर्व शिक्षा राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान की सफलता के अलावा आदिवासी समुदाय के प्रभाव के कारण यहां साक्षरता दर उत्कृष्ट आगे बताते हैं। वहां 1964 के बाद शिक्षा में सुधार लाने की प्रक्रिया है इसी प्रकार आजादी पूर्व से केरल विकास पर जोर दिया जाता है। तो लगता है कि छोटे राज्यों में भ्रष्टाचार कम हुआ कि राष्ट्रीय पहचान बनाने के इच्छुक होते हैं। दूसरी ओर बड़े राज्यों में मध्यवर्ग की आबादी बहुत बढ़ गई है। अपनों को तो निजी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं लेकिन लड़कियों को घरेलू कार्यों में ही लगाए रखते हैं। 

अशिक्षा से पनपता भेदभाव 
बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में एक निजी स्कूल के निर्देशक कमल किशोर महिला साक्षरता दर में अंतर के लिए स्थानीय समाज की मानसिकता में अंतर के अलावा वहां की सामाजिक एवं आर्थिक संरचना को जिम्मेदार मानते हैं।  इनका कहना है कि शिक्षा ही लड़के लड़कियों के बीच भेदभाव को बढ़ावा देती है आर्थिक पिछड़ेपन के कारण अभिभावक बेटियों को स्कूल भेजने की हिम्मत नहीं कर पाते। हालाँकि लड़कियों ने समय-समय पर साबित किया है कि वह किसी से कम नहीं। फिर वह स्कूल की परीक्षा हो या कोई प्रतियोगी परीक्षा अवसर मिलने पर मैं खुद को साबित कर दिखती हैं। ऐसे में सरकार के साथ-साथ बेहद समाज का फर्ज बनता है कि वह लड़कियों की शिक्षा का महत्व समझे। सविता अरोड़ा ने तो बच्चों के साथ उनकी माताओं को भी पढ़ाने की मुहीम चला रखी है शहर कोई भी हो।  परिवारों तक मैं लड़कियों को उच्च शिक्षा की बजाय शादी करने के लिए मजबूर किया जाता है इसलिए हायर सेकेंडरी एजुकेशन के बाद नहीं पढ़ पाते इन महिलाओं को अपने बच्चों की खातिर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हूं इसका अद्भुत परिणाम मिला है। 

बेटी पढ़ाओ बेटी बचाओ को महत्त्व नारे से आगे ले जाने की जरूरत 
बड़े राज्यों की बजाए छोटे राज्यों की बेटियों में बढ़ रही है साक्षरता दर



बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ 
यह अभियान देश के 161 जिलों में चल रहा है। 2016 में वित्त मंत्रालय से रिवाइज की गाइडलाइंस मिलने के बाद महिला एवं बाल विकास मंत्रालय चयनित जिलों के लिए निर्धारित धनराशि को सीधे जिलाधिकारी व आयोग के बाद भेज देते हैं।  इस अभियान के तहत केंद्र सरकार ने प्रत्येक चयनित जिले के लिए 5 करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। 

बच्चों को देनी होगी प्राथमिकता 
पूजा मारवाह, सीईओ, क्राई 
बच्चे हमारी प्राथमिक सूची में नहीं है। लड़कियां तो और भी उपेक्षित हैं। उन्हें देश के नागरिक के रूप में देखने की आवश्यकता है। विकास व कल्याणकारी योजनाएं, शिक्षा, अपराध और अन्य मुद्दों पर नीति निर्धारण एवं बजट में प्रावधान करते समय बच्चों को केंद्र में रखना हमारा उद्देश्य होना चाहिए। जब तक वह देश के विकास के एजेंडे में शामिल नहीं होंगे, स्थिति में सुधार नहीं आएगा। 
शिक्षा से बने काबिल 
अंशु जमसेन्या, माउंटेनियर 
मैं लड़कियों से यही कहना चाहूंगी कि खुद पर विश्वास करें। शिक्षा के जरिए अपने को काबिल बनाएं। जिस क्षेत्र में मन रमता हो उनका अध्ययन करने के बाद प्रशिक्षण हासिल करें। अपने सपनों का पीछा करने का हौसला रखें और उसे जीतकर दिखाएं। 

इन राज्यों में आगे बेटियां 
केरल 6 
लड़कों की संख्या 4.28 
हिमाचल प्रदेश 1 पॉइंट 4400000 
लड़कों की संख्या 1 पॉइंट 2500000 
मेघालय 22042 1000 
लड़कों की संख्या 38 हजार 
सोर्स - मानव संसाधन विकास मंत्रालय 
इन राज्यों में पिछड़ी बेटियां 
उत्तर प्रदेश 29 पॉइंट 3700000 
लड़कों की संख्या 32 पॉइंट 2001006 
बिहार पॉइंट 9600000 
लड़कों की संख्या 9 पॉइंट 4800000 
मध्य प्रदेश 7 पॉइंट 9500000 
लड़कों की संख्या 9 पॉइंट 7500000 
मानव संसाधन विकास मंत्रालय 
महिला साक्षरता में शीर्ष के राज्य 
केरल 
मिजोरम 
लक्षद्वीप  
त्रिपुरा 
अंडमान एवं निकोबार दीप 
गोवा 
नागालैंड 
महाराष्ट्र 
मेघालय 
मणिपुर

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