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Tuesday, 8 May 2018

Facebook अनजाने में बना आतंकी नेटवर्क 
Facebook पर आरोप लगा है कि सोशल साइट ने अपने जरिए सजेस्टेड फ्रेंड टूल के जरिए आतंकी संगठन आईएसआईएस के हजारों समर्थकों को एक दूसरे से जोड़ दिया। अमेरिकी NGO काउंटर एक्सट्रीम प्रोजेक्ट सीपीसी हालिया रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।  
शोधकर्ताओं ने 96 देशों के 1000 समर्थकों को विश्लेषण किया और पाया कि यह इस्लामिक कट्टरपंथी नियमित रूप से एक दूसरे से रुबरु हो रहे थे। आलोचकों के मुताबिक यह फीचर एक जैसे रूचि वाली यूजर को जोड़ने के लिए बनाया गया था पर इसने आतंकियों को जोड़ने और नेटवर्क बनाने में मदद कर दी। सीपीई के रॉबर्ट पोस्टिंग ने बताया कि Facebook ज्यादा लोगों को जोड़ना चाहता है लेकिन उसने अनचाहे ऐसा तंत्र बना दिया। जो कट्टरपंथियों और आतंकियों को एक दूसरे से जोड़ने में मदद कर रहा है। शोध में यह दावा किया गया कि एक केस में आईएस समर्थक की फ्रेंड रिक्वेस्ट एक्सेप्ट करने के बाद का एक गैर मुस्लिम 6 महीने में कट्टरपंथी बन गया। Facebook का कहना है कि वह कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मानव मध्यस्थ के जरिए कटरपंथी की सामग्री को हटा रहा है। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि Facebook आक्रामक तरीके से काम कर रहा है। जिससे आतंकी साइट का इस्तेमाल ना कर सके। 
अगर आप भी फेसबुक यूजर है तो सावधान हो जाइये क्योकि फेसबुक अब आतंकियों का एक संगठन बन चूका है क्या आप भी इसमें शामिल तो नहीं पढ़ने के लिए क्लिक करें....


पॉकेट मनी खर्च करके गरीब बच्चों को पढ़ाया 
किसी विद्यार्थी के लिए 10वीं की परीक्षाएं खत्म होना एक उत्सव सरीखा होता है। मेरे लिए भी था। मेरी परीक्षाएं खत्म हुई, तो सर्दियां खत्म नहीं हुई थी। परीक्षा के तनाव से मुक्त होकर मैं सुबह-सुबह जबलपुर के पास नदी तट पर घूमने गई थी। ठंड से बचने के लिए मैंने गर्म कपड़े पहन रखे थे, पर वहां एक शख्स जूट की बोरी में लेटा हुआ था। मैं साफ-साफ देख पा रही थी कि उसे ठंड लग रही है। वहां से लौटने के बाद सभी लोगों की चिंता होने लगी जो सर्दी का मुकाबला जूट की बोरी से करते हैं। अगले ही दिन मैंने अपने मोहल्ले में पुराने कपड़े इकठा किये और उन्हें जाकर जरुरतमंदो में बांट आई। 
यह पहली घटना थी, जिसने मुझे  समाज के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया। बचपन में ही मेरे माता-पिता जबलपुर के पास सिवनी जिले के धुमा गांव में आकर बस गए थे। मेरी परवरिश इसी गांव में हुई। मैं बचपन से ही बड़ी जिद्दी किस्म की लड़की हूं। फिर चाहे हड़ताल में विज्ञान की पढ़ाई शुरू कराना रहा हो या किशोरावस्था में आते हैं घर में शौचालय बनवाने का सफल प्रयास। गांव की पढ़ाई पूरी करने के बाद मैं जबलपुर आ गई। 4 साल पहले की बात है मैं पढ़ाई कर रही थी मैं उस समय स्नातक की पढ़ाई कर रही थी कि मैंने शिक्षा स्वास्थ्य महिला सुरक्षा जैसी तमाम सामाजिक समस्याओं का बहुत गरीब से अनुभव किया था तो मेरे दिमाग में हमेशा इस क्षेत्र में कुछ करने का ख्याल रहता रहता था। इसी बीच एक धार्मिक संगठनों द्वारा बच्चों के लिए संस्कार चलाएं आयोजित बारे में पता चला मुझे यह काम जच गया। और मैं भी उनके साथ हो ली।  
लेकिन कुछ ही दिनों में मुझे लगा बच्चों को संस्कारों के साथ बहुत बहुउद्देशीय शिक्षा की आवश्यकता है। इसके बाद एक बस्ती से मैंने कुछ बच्चों को इकट्ठा कर अलग से पढ़ाना शुरु कर दिया। शुरू में वह बच्चे मुझसे बहुत प्रभावित नहीं हुई पर जल्द ही मैंने रफ्तार पकड़ ली। यह सब मैं बिना घर वालों को बताएं किए जा रही थी। एक दिन स्थानीय अखबार में मेरी काम के बारे में खबर छपी। जिसे गांव में मेरे पिता ने पढ़ा तो वह चकित रह गए उनके चकित होने की वजह भी थी क्योंकि तब तक मुझे गरीब बच्चों को पढ़ाते हुए 1 साल हो चुके थे। पिता की मन में मेरे भविष्य को लेकर कुछ आशंकाएं पैदा हुई लेकिन जल्द ही मैंने उसे विश्वास में ले लिया। दरअसल मैं इस काम में होने वाले खर्च के लिए अपनी पॉकेट मनी इस्तेमाल करती थी। झुग्गी के बच्चों को पढ़ाने का मेरा काम दिनों दिन बढ़ता गया और मेरे प्रयासों से उन बच्चों के अभिभावकों ने उन्हें स्कूल भेजना शुरू कर दिया। इस सफलता से मुझे जो संतुष्टि मिली उसे मैं बयां नहीं कर सकती मैंने उन लोगों को अपने काम से जोड़ा जो अपने जन्मदिन को गरीबों के बीच जाकर मनाना पसंद करते हैं। ऐसे लोग इन बच्चों के बीच अपना जन्मदिन मनाते हैं। आज मेरे साथ कई स्वयंसेवक गए हैं इनमें कई उच्च शिक्षित लोग भी शामिल है। फिलहाल हम करीब 200 बच्चों को स्कूल पहुंचाने में कामयाब हुए हैं। अगले 2 महीनों में मेरी MSC की पढ़ाई पूरी हो रही है। मेरी योजना है कि मैं प्रशासनिक सेवा से जुड़कर समाज के लिए बेहतर तरीके से काम करूं। 

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